भारी धातुओं कें अंतर्गत वे तत्व आते हैं जिनका घनत्व 5 से अधिक होता है। मुख्य भारी धातुयें हैं- कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, कॉपर, आयरन, मरकरी, मैग्नीज, मोलिब्डेनम, निकिल, लेड, टिन तथा जिंक। कुछ भारी धातुयें जैसे- कॉपर, आयरन, मैग्नीज, जिंक, मोलिब्डेनम तथा कोबाल्ट की सूक्ष्म मात्रा जानवरों के लिये आवश्यक होती है, किंतु कैडमियम, मरकरी तथा लैड न तो पौधों के लिये आवश्यक है और न ही जानवरों के लिये अर्थात पर्यावरण में इनकी उपस्थिति वनस्पतियों, जीवों एवं स्वयं मनुष्य के लिये हानिकारक होती हैं। ये विषैली भारी धातुयें अनुमत सांद्रण सीमा से अधिक होने पर मृदा के धात्विक प्रदूषण का कारण बनती हैं। इन धातुओं को औद्योगिक महत्त्व होने के नाते रोज नये-नये कारखानों की स्थापना हो रही है। फलत: प्रतिदिन अपशिष्ट के रूप में इन धातुओं का ढेर सा लग जाता है और पर्यावरण में इन धातुओं का प्रचुर अंश विष रूप में मिलता रहता है। इन अपशिष्टों के हवा, नदी-नाले तथा मिट्टी आदि में पहुँचने से जल तथा मिट्टी के धात्विक प्रदूषण की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जल, वायु, मिट्टी ही नहीं अपितु इससे अब खाद्य सामग्री भी प्रदूषित होने लगी है।
शहरी गंदे जल (सीवेज-स्लज) से खींची गयी मिट्टियों में उपजने वाली फसलों में कैडमियम की उच्च मात्रायें पायी जा सकती हैं। अतएव पौधे तथा फसलें कम से कम कैडमियम ग्रहण करें, इस दिशा में शोध की आवश्यकता बनी हुई है।
यहाँ प्रस्तुत भारी धातुओं के अतिरिक्त अन्य और भी भारी धातुयें हैं जो पर्यावरण प्रदूषण के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्यत: भारी धातुयें वे हैं जिनका घनत्व 5 से अधिक हो किंतु आजकल इस मूल संकल्पना में परिवर्तन हो चुका है अब भारी धातुयें उन्हें माना जाता है जिनमें इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण का गुण-धर्म पाया जाता है।