ध्वनि प्रदूषण आज के युग मे एक बहुत बडी समस्या बनती जा रही हैं कई प्रकार स ध्वनिे प्रदूषण होता है प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण होता है । परन्तु प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण अपेक्षाकृत अल्पकालीन होता है तथा हानि भी कम होती है । शोर के प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत बादल की गडगडाहट, बिजली की कडक, तूफानी हवाएं आदि से मनुष्य असहज (क्पेबवउवितज) महसूरा करता, परन्तु बूंदों की छमछम, चिडियों की कलरव और नदियों, झरनों की कलकल ध्वनि मनुष्य में आनंद का संचार भी करती है ।
(2) मानवीय स्रोत:
बढते हुए शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है । वस्तुतः शोर और मानवीय सभ्यता सदैव रहेगें
: ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख मानवीय स्रोत निम्न है:
i. उद्योग:
लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित है कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से उत्पन्न आवाजध्गडगडाहट इसका प्रमुख कारण है । ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, टरबाइन काफी शोर उत्पन्न करते हैं । अधिकतर उद्योग शहरी क्षेत्रों में स्थापित हैं, अतः वहां ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता अधिक है ।
ii. परिवहन के साधन:
ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण परिवहन के विभिन्न साधन भी हैं । परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं । इनसे होने वाला प्रदूषण बहुत अधिक क्षेत्र में होता है।भारत में कुल वाहनों का आंकड़ा लगभग 22 करोड से पार हो गया है, जिसमें से दो पहिया वाहनों की संख्या लगभग 17 करोड 60 लाख और चार पहिया वाहनों की संख्या 4 करोड 40 लाख हैं । जिसमें कार, टैक्सी, बसें और ट्रक शामिल हैं । वाहनों में प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत
वृद्धि हो रही है
iii. मनोरंजन के साधन:
मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करता है । वह टी वी. रेडियो, टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) जैसे साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करता है परन्तु इनसे उत्पन्न तीव्र ध्वनि शोर का कारण बन जाती है । विवाह, सगाई इत्यादि कार्यक्रमों, धार्मिक आयोजनो, मेंलों, पार्टियों में लाऊड स्पीकर का प्रयोग और डी.जे. के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है ।
iv. निर्माण कार्य:
विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त विभिन्न मशीनों और औजारों के प्रयोग के फलस्वरूप ध्वनि प्रदूषण बढा है ।
v. आतिशबाजी:
हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है । विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलो, सांस्कृतिकध्वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है ।
मैच या चुनाव जीतने की खुशी भी आतिशबाजी द्वारा व्यक्त की जाती है । परन्तु इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है ।
vi. अन्य कारण:
विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक रैलियों श्रमिक संगठनों की रैलियों का आयोजन इत्यादि अवसरों पर एकत्रित जनसमूहों के वार्तालाप से भी ध्वनि तरंग तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है । इसी प्रकार प्रशासनिक कार्यालयों. स्कूली, कालेजों, बस स्टैण्डों, रेलवे स्टेशनों पर भी विशाल जनसंख्या के शोरगुल के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है । इसी प्रकार अन्य छोटे-छोटे कई ऐसे कारण हैं जो ध्वनि प्रदूषण को जन्म देते हैं जैसे कम चौडी सडकें, सडक पर सामान बेचने वालों के लिए कोई योजना न होना पीक आवर में ज्यादा ट्रैफिक ।
:ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव
ध्वनि प्रदूषण से मनुष्यों पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभावों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:
(i) सामान्य प्रभाव:
ध्वनि प्रदूषण द्वारा मानव वर्ग पर पडने वाले प्रभावों के अंतर्गत बोलने में व्यवधा चिडचिडापन, नींद में व्यवधान तथा इनके संबंधित पश्चप्रभावों एवं उनसे उत्पन्न समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है ।
(ii) श्रवण संबंधी प्रभाव
विभिन्न प्रयोगो के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ध्वनि की तीव्रता जब 90 डी.वी. से अधिक हो जाती है तो लोगों की श्रवण क्रियाविधि में विभिन्न मात्रा में श्रवण क्षीणता होती है ।
श्रवण क्षीणता निम्न कारकों पर आधारित होती है:
शोर की अबोध ध्वनि तरंग की आवृत्ति तथा व्यक्ति विशेष की शोर की संवेदनशीलता । लखनऊ में बढते ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए ऐसे लोगों पर शोध किया गया जो लगातार पाँच साल से 10 घंटे से अधिक समय शोर-शराबे के बीच गुजारते हैं । देखने में आया कि 55 प्रतिशत लोगों की सुनने की ताकत कम हो गई है ।
(iii) मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
उच्च स्तरीय ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्यों में कई प्रकार के आचार व्यवहार संबंधी परिवर्तन हो जाते है । दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर हो जाता है । माँसपेशियों में तनाव तथा खिचाव हो जाता है । स्नायुओं में उत्तेजना हो जाती है ।
(iv) शारीरिक प्रभाव:
उच्च शोर के कारण मनुष्य विभिन्न विकृतियों एवं बीमारियों सग्रसित हो जाता है जैसे- उच्च रक्तचाप, उत्तेजना, हृदय रोग, आँख की पुतलियों में खिचाव तथा तनाव मांसपेशियों में खिचाव, पाचन तंत्र में अव्यवस्था, मानसिक तनाव, अल्सर जैसे पेट एवं अतडियों के रोग आदि ।
विस्फोटों तथा सोनिक बूम के अचानक आने वाली उच्च ध्वनि के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है लगातार शोर में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के नवजात (ध्वनि की गति से अधिक चलने वाले जेट विमानों से उत्पन्न शोर को सोनिक बूम कहते हैं ।) शिशुओ में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं ।
देशभर में इन दिनों प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने और बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल करने की पहल की जा रही है। अगर हम थोड़ी-सी कोशिश करें तो बेकार चीजों का बेहतर तरीके से निस्तारण कर सकते हैं और पर्यावरण में अहम योगदान दे सकते हैं।प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत नियमों में वर्ष 2018 में संशोधन किया गया था जिसमें बहु स्तरीय प्लास्ट कि के अलावा अन्य प्लास्टिक के प्रकारों पर चरणबद्ध तरीके से जोर देना है जो गैर पुनर्चक्रण या गैर-ऊर्जा प्राप्ति योग्य या बिना वैकल्पिक उपयोग के साथ हैं।
संशोधित नियमों में निर्माता/आयातक/ब्रांड के मालिक के पंजीकरण के लिये एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली का भी प्रावधान है।
संशोधित नियमों में यह बताया गया है कि पंजीकरण स्वचालित होना चाहिये और उत्पादकों, रिसाइकलर्स और निर्माताओं के लिये व्यापार में सुविधा को ध्यान में रखना चाहिये।
जबकि दो से अधिक राज्यों में उपस्थिति वाले उत्पादकों के लिये एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री निर्धारित की गई है और एक या दो राज्यों के भीतर काम करने वाले छोटे उत्पादकों/ ब्रांड मालिकों के लिये एक राज्य-स्तरीय पंजीकरण निर्धारित किया गया है।
आगे की राह
भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग से उत्पन्न कुल प्लास्टिक कचरा 40% से अधिक है और यह महत्त्वपूर्ण है कि ई-खुदरा विक्रेताओं को दिशा निर्देश जारी किये जाएँ कि वे प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री का उपयोग करना बंद करें और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग सामग्री के विकल्प को अपनाएं सिंगल यूज प्लास्टिक ज्यादा खतरनाक
यों तो प्लास्टिक खतरनाक होता ही है, लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। यह सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल के लिए बनाई गई होती है। इनमें कैरी बैग, कप, पानी या कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, स्ट्रॉ, फूड पैकेजिंग आदि आते हैं।