लोकतंत्र और राजनीति का आधार स्तंभ है चुनाव आयोग भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाए गए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है की एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किए जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है चुनावों के दौरान चुनाव आयोग को बड़ी मात्रा में अधिकार सौंप दिए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर यह सिविल कोर्ट के रूप में भी कार्य कर सकता है
चुनावी प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह मतदाता सूची में 1 मतदाता के रूप में शामिल होने के योग्य है यही योग्य मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराए आमतौर पर उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तिथि से 1 सप्ताह पहले एक मतदाता पंजीकरण के लिए अनुमति दी गई है भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर हैं लेकिन मुख्य तौर पर संविधान में पूरे देश के लिए एक लोकसभा तथा प्रत्येक राज्यों के लिए अलग विधानसभा का प्रावधान है
मतदाता पंजीकरण
भारत के कुछ शहरों में ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण फॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं और निकटतम चुनावी कार्यालय में जमा किए जा सकते हैं जैसे कुछ सामाजिक रूप से प्रासंगिक वेबसाइट मतदाता पंजीकरण की जानकारी प्राप्त करने के लिए अच्छा स्थान है मतदान व्यवहार प्रभावित और निर्धारित करने वाले कारक भारतीय समाज अपने प्रकृति एवं रचना में अत्यंत विविध है इसलिए भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक हैं सब की चर्चा करना भी मुश्किल है समझने की दृष्टि से आइए हम इसके मुख्य सामाजिक आर्थिक कारक तथा राजनीतिक कारकों पर चर्चा करते हैं
जाति जाति मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण कारण है समाज में आधुनिकता आने के बावजूद भी जाती वोट देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैक्टर के रूप में काम करता है आज भी राजनीतिक दल अपनी चुनावी राजनीति बनाने के लिए ईस कारक को हमेशा ध्यान में रखते हैं वह किसी खास जाति बहुल क्षेत्र में उसी जाति के उम्मीदवार को उतारते हैं
रजनी कोठारी के अनुसार:-
“भारतीय राजनीति जातिवाद है तथा जाति राजनीतिवाद”
धर्म
भारत में धर्म एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है जो मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है जाति जहां किसी छोटे से भाग में अपना प्रभाव दिखातीे हैं वही धर्म एक बड़े भाग में अपना प्रभाव दिखाता है क्योंकि अंतर जातिगत बंधनों के कारण जाति पक्ष थोड़ा कमजोर हो जाता है लेकिन धार्मिक पक्ष अपना रंग दिखाना शुरू करता है
भाषा
भाषा विचार लोगों के मतदान के बाहर को कितना प्रभावित कर सकता है इसका उदाहरण आप इस रूप में देखिए कि जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी को चलाने की बात होती है द्रविडियन भाषा वाले लोग एक हो जाते हैं यहां तक कि पहला राज्य भी भाषा के आधार पर अलग हुआ था चुनाव के दौरान राजनीतिक दल लोगों की भाषा की भावनाएं उतारकर उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं
धन
मतदान के व्यवहार की व्याख्या करते हुए धन या पैसा की अनदेखी नहीं की जा सकती है चुनावी खर्चों पर सीमा बांधने के बावजूद करोड़ो रुपए खर्च किए जाते हैं मतदाता अपने मत के बदले पैसा या शराब या कोई और वस्तु चाहता है लेकिन यह भी कई बार यह भी काम नहीं करता कई बार यह देखा जाता है कि मतदाता किसी और से पैसे लेकर किसी और को वोट दे देते हैं और कई बार इसके उपरांत भी रातों-रात जन भाषाएं बदल जाती हैं और मतदान के दिन लोग किसी और को वोट डालकर आ जाते हैं
क्षेत्र
क्षेत्र बात है बताओ क्षेत्रवाद की भी मतदान व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका है उप राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावनाएं अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण बनी है इस प्रकार के क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय से मित्रता तथा भावनाओं के आधार पर मतदाताओं से मत की अपील करते हैं
चुनाव का मतदान व्यवहार में मीडिया की भूमिका सूचना प्रसार चुनाव की घोषणा नामांकन जांच चुनाव अभियान सुरक्षा व्यवस्था चुनाव कब कहां और कैसे की जानकारी मतगणना तथा परिणाम की घोषणा उम्मीदवारों की शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति तथा उनके आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित सूचना आदेश सबको व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार की जरूरत होती है और मीडिया यह काम बड़ी सहजता से करती है
लोकतंत्र और राजनीति का आधार स्तंभ है चुनाव आयोग भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाए गए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है की एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किए जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है चुनावों के दौरान चुनाव आयोग को बड़ी मात्रा में अधिकार सौंप दिए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर यह सिविल कोर्ट के रूप में भी कार्य कर सकता है
चुनावी प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह मतदाता सूची में 1 मतदाता के रूप में शामिल होने के योग्य है यही योग्य मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराए आमतौर पर उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तिथि से 1 सप्ताह पहले एक मतदाता पंजीकरण के लिए अनुमति दी गई है भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर हैं लेकिन मुख्य तौर पर संविधान में पूरे देश के लिए एक लोकसभा तथा प्रत्येक राज्यों के लिए अलग विधानसभा का प्रावधान है
मतदाता पंजीकरण
भारत के कुछ शहरों में ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण फॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं और निकटतम चुनावी कार्यालय में जमा किए जा सकते हैं जैसे कुछ सामाजिक रूप से प्रासंगिक वेबसाइट मतदाता पंजीकरण की जानकारी प्राप्त करने के लिए अच्छा स्थान है मतदान व्यवहार प्रभावित और निर्धारित करने वाले कारक भारतीय समाज अपने प्रकृति एवं रचना में अत्यंत विविध है इसलिए भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक हैं सब की चर्चा करना भी मुश्किल है समझने की दृष्टि से आइए हम इसके मुख्य सामाजिक आर्थिक कारक तथा राजनीतिक कारकों पर चर्चा करते हैं
जाति जाति मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण कारण है समाज में आधुनिकता आने के बावजूद भी जाती वोट देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैक्टर के रूप में काम करता है आज भी राजनीतिक दल अपनी चुनावी राजनीति बनाने के लिए ईस कारक को हमेशा ध्यान में रखते हैं वह किसी खास जाति बहुल क्षेत्र में उसी जाति के उम्मीदवार को उतारते हैं
रजनी कोठारी के अनुसार:-
“भारतीय राजनीति जातिवाद है तथा जाति राजनीतिवाद”
धर्म
भारत में धर्म एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है जो मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है जाति जहां किसी छोटे से भाग में अपना प्रभाव दिखातीे हैं वही धर्म एक बड़े भाग में अपना प्रभाव दिखाता है क्योंकि अंतर जातिगत बंधनों के कारण जाति पक्ष थोड़ा कमजोर हो जाता है लेकिन धार्मिक पक्ष अपना रंग दिखाना शुरू करता है
भाषा
भाषा विचार लोगों के मतदान के बाहर को कितना प्रभावित कर सकता है इसका उदाहरण आप इस रूप में देखिए कि जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी को चलाने की बात होती है द्रविडियन भाषा वाले लोग एक हो जाते हैं यहां तक कि पहला राज्य भी भाषा के आधार पर अलग हुआ था चुनाव के दौरान राजनीतिक दल लोगों की भाषा की भावनाएं उतारकर उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं
धन
मतदान के व्यवहार की व्याख्या करते हुए धन या पैसा की अनदेखी नहीं की जा सकती है चुनावी खर्चों पर सीमा बांधने के बावजूद करोड़ो रुपए खर्च किए जाते हैं मतदाता अपने मत के बदले पैसा या शराब या कोई और वस्तु चाहता है लेकिन यह भी कई बार यह भी काम नहीं करता कई बार यह देखा जाता है कि मतदाता किसी और से पैसे लेकर किसी और को वोट दे देते हैं और कई बार इसके उपरांत भी रातों-रात जन भाषाएं बदल जाती हैं और मतदान के दिन लोग किसी और को वोट डालकर आ जाते हैं
क्षेत्र
क्षेत्र बात है बताओ क्षेत्रवाद की भी मतदान व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका है उप राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावनाएं अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण बनी है इस प्रकार के क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय से मित्रता तथा भावनाओं के आधार पर मतदाताओं से मत की अपील करते हैं
चुनाव का मतदान व्यवहार में मीडिया की भूमिका सूचना प्रसार चुनाव की घोषणा नामांकन जांच चुनाव अभियान सुरक्षा व्यवस्था चुनाव कब कहां और कैसे की जानकारी मतगणना तथा परिणाम की घोषणा उम्मीदवारों की शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति तथा उनके आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित सूचना आदेश सबको व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार की जरूरत होती है और मीडिया यह काम बड़ी सहजता से करती है