Sewerage In India

Why doesn’t sewerage in India link to water treatment or sewage treatment plant? Or do Indians even believe in recycling waste water?

A sewage collection and treatment system costs money to design, build and operate/maintain.

India is not a very prosperous nation relative to it’s size and population, so money spending has a lot of priorities.

The governments did not have it as their top priority, except in cities and towns with some sort of planning for sewage collection networks, even in these cities and towns sewage (sometimes a little, sometimes a lot) is thrown in rivers without treatment due to low capacity of available treatment plants.

As we grow more prosperous and aware of the pollution we’re causing, we’ve started building new sewage collection systems and treatment plants.

Water itself is very cheap in India to the state governments and the people, so no one cares, otherwise indians are the kings of recycling and using things till they dont break down physically to a beyond any use state, at which point that thing is sold to a kabadi wala, who eventually gets it to someone who can recycle it.

Put a monetary value to water and indians will start finding a million ways to reduce and reuse.
Water recycling is a process where treated wastewater is used for various purposes such as flushing toilets, industrial processes, and agriculture and landscape irrigation. The water recycling process offers significant financial and resource savings. The wastewater treatment process is carried out to meet the water requirements for planned reuse. Recycled water for landscape irrigation requires far less maintenance than recycled water for drinking purposes.

Although, most water recycling projects are carried out to meet the demand for water that cannot be drunk. A large number of projects indirectly use recycled water for drinking purposes. These types of projects consist of replenishing groundwater aquifers and increasing surface water reservoirs with recycled water. Projects such as groundwater recharge, recycled water are injected into groundwater aquifers to increase groundwater supply. For example, a direct injection project, located in the US, has planted recycled water into aquifers to avoid ingress of salt water, thereby increasing the supply of ground water from potable water

PROBLEMS OF CHILD LABOUR


Recent studies estimate that 168 million children aged 5 to 17 (with around 120 million of them below age 14) are involved in child labor. Millions of other children are forced into slavery, child soldiering, drug trafficking, or sexual exploitation. While these rates are slowly declining, child labour remains a threat to economies around the world. The children that are employed at a young age are frequently familiar with violence and deprived of education.

But how do these children come to work in the first place? Several factors contribute to these circumstances, with the greatest factors being poverty, emergencies, migration, rare work opportunities, and social norms condoning this practice. However, a major issue with child labor is that it reinforces these practices and impedes progress toward the fulfillment of children’s rights, especially as many children lack education due to being employed instead of attending school. Those children then do not have the means to climb higher in terms of economic status, as they are not qualified for many opportunities that require an education.

Many dangers are associated with child labor. In the Philippines, children cheat death in order to dive for gold. In the United States, child workers are often exposed to pesticides on farms. The list goes on and on and many of these hazards create risks that these children will be in an accident or develop a health issue later in life. However, besides being physically dangerous to children’s heath, working conditions often deprive children of stimulation during an essential mental developmental period in their lives. This exposes them to the risk of not developing emotionally and can also result in psychological or behavioral damage that can remain with them for life.

What are some ways to lessen the prevalence of child labor? Companies can take small steps to decrease the prevalence of child labor by vetting every aspect of their supply chain and employing independent inspectors to conduct random checks on supplier facilities. In addition, they can work with organizations such as UNICEF to eliminate any aspects of their operations relating to child labor by implementing sustainable solutions.

Recently, a human rights organization alleged that Apple, Samsung, and Sony failed to conduct regular inspections to ensure that materials they use are not associated with child labor. Because of this, the organization is claiming that children as young as seven are working in dangerous conditions to mine cobalt, an important component of lithium-ion batteries used in tech products. Some of the hazards associated with mining cobalt are risks of long-term health problems, unsanitary conditions, and fatal accidents. In response to the recent allegations, Apple issued a statement that said: “Underage labour is never tolerated in our supply chain and we are proud to have led the industry in pioneering new safeguards.” While all the companies are investigation the claims, all of them have issued statements talking about their zero tolerance policies. However, companies can avoid this bad publicity and risk of exposing themselves to liability by implementing standards for suppliers and partners to prevent this practice in the first place and hold everyone associated with their business accountable for maintaining the same standards. Child labor is not a problem that can be solved overnight, but each individual and organization can play their part in reducing its prevalence by taking small steps.

भारत में चुनाव काे प्रभावित करने वाले कारक

लोकतंत्र और राजनीति का आधार स्तंभ है चुनाव आयोग भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाए गए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है की एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किए जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है चुनावों के दौरान चुनाव आयोग को बड़ी मात्रा में अधिकार सौंप दिए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर यह सिविल कोर्ट के रूप में भी कार्य कर सकता है
चुनावी प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह मतदाता सूची में 1 मतदाता के रूप में शामिल होने के योग्य है यही योग्य मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराए आमतौर पर उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तिथि से 1 सप्ताह पहले एक मतदाता पंजीकरण के लिए अनुमति दी गई है भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर हैं लेकिन मुख्य तौर पर संविधान में पूरे देश के लिए एक लोकसभा तथा प्रत्येक राज्यों के लिए अलग विधानसभा का प्रावधान है
मतदाता पंजीकरण
भारत के कुछ शहरों में ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण फॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं और निकटतम चुनावी कार्यालय में जमा किए जा सकते हैं जैसे कुछ सामाजिक रूप से प्रासंगिक वेबसाइट मतदाता पंजीकरण की जानकारी प्राप्त करने के लिए अच्छा स्थान है मतदान व्यवहार प्रभावित और निर्धारित करने वाले कारक भारतीय समाज अपने प्रकृति एवं रचना में अत्यंत विविध है इसलिए भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक हैं सब की चर्चा करना भी मुश्किल है समझने की दृष्टि से आइए हम इसके मुख्य सामाजिक आर्थिक कारक तथा राजनीतिक कारकों पर चर्चा करते हैं
जाति जाति मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण कारण है समाज में आधुनिकता आने के बावजूद भी जाती वोट देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैक्टर के रूप में काम करता है आज भी राजनीतिक दल अपनी चुनावी राजनीति बनाने के लिए ईस कारक को हमेशा ध्यान में रखते हैं वह किसी खास जाति बहुल क्षेत्र में उसी जाति के उम्मीदवार को उतारते हैं
रजनी कोठारी के अनुसार:-
“भारतीय राजनीति जातिवाद है तथा जाति राजनीतिवाद”
धर्म
भारत में धर्म एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है जो मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है जाति जहां किसी छोटे से भाग में अपना प्रभाव दिखातीे हैं वही धर्म एक बड़े भाग में अपना प्रभाव दिखाता है क्योंकि अंतर जातिगत बंधनों के कारण जाति पक्ष थोड़ा कमजोर हो जाता है लेकिन धार्मिक पक्ष अपना रंग दिखाना शुरू करता है
भाषा
भाषा विचार लोगों के मतदान के बाहर को कितना प्रभावित कर सकता है इसका उदाहरण आप इस रूप में देखिए कि जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी को चलाने की बात होती है द्रविडियन भाषा वाले लोग एक हो जाते हैं यहां तक कि पहला राज्य भी भाषा के आधार पर अलग हुआ था चुनाव के दौरान राजनीतिक दल लोगों की भाषा की भावनाएं उतारकर उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं
धन
मतदान के व्यवहार की व्याख्या करते हुए धन या पैसा की अनदेखी नहीं की जा सकती है चुनावी खर्चों पर सीमा बांधने के बावजूद करोड़ो रुपए खर्च किए जाते हैं मतदाता अपने मत के बदले पैसा या शराब या कोई और वस्तु चाहता है लेकिन यह भी कई बार यह भी काम नहीं करता कई बार यह देखा जाता है कि मतदाता किसी और से पैसे लेकर किसी और को वोट दे देते हैं और कई बार इसके उपरांत भी रातों-रात जन भाषाएं बदल जाती हैं और मतदान के दिन लोग किसी और को वोट डालकर आ जाते हैं
क्षेत्र
क्षेत्र बात है बताओ क्षेत्रवाद की भी मतदान व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका है उप राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावनाएं अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण बनी है इस प्रकार के क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय से मित्रता तथा भावनाओं के आधार पर मतदाताओं से मत की अपील करते हैं
चुनाव का मतदान व्यवहार में मीडिया की भूमिका सूचना प्रसार चुनाव की घोषणा नामांकन जांच चुनाव अभियान सुरक्षा व्यवस्था चुनाव कब कहां और कैसे की जानकारी मतगणना तथा परिणाम की घोषणा उम्मीदवारों की शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति तथा उनके आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित सूचना आदेश सबको व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार की जरूरत होती है और मीडिया यह काम बड़ी सहजता से करती है
लोकतंत्र और राजनीति का आधार स्तंभ है चुनाव आयोग भारत में चुनावों का आयोजन भारतीय संविधान के तहत बनाए गए भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा किया जाता है यह एक अच्छी तरह स्थापित परंपरा है की एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोई भी अदालत चुनाव आयोग द्वारा परिणाम घोषित किए जाने तक किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकती है चुनावों के दौरान चुनाव आयोग को बड़ी मात्रा में अधिकार सौंप दिए जाते हैं और जरूरत पड़ने पर यह सिविल कोर्ट के रूप में भी कार्य कर सकता है
चुनावी प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति है जो भारत का नागरिक है और जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह मतदाता सूची में 1 मतदाता के रूप में शामिल होने के योग्य है यही योग्य मतदाता की जिम्मेदारी है कि वह मतदाता सूची में अपना नाम शामिल कराए आमतौर पर उम्मीदवारों के नामांकन की अंतिम तिथि से 1 सप्ताह पहले एक मतदाता पंजीकरण के लिए अनुमति दी गई है भारतीय लोकतंत्र में चुनाव प्रक्रिया के अलग-अलग स्तर हैं लेकिन मुख्य तौर पर संविधान में पूरे देश के लिए एक लोकसभा तथा प्रत्येक राज्यों के लिए अलग विधानसभा का प्रावधान है
मतदाता पंजीकरण
भारत के कुछ शहरों में ऑनलाइन मतदाता पंजीकरण फॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं और निकटतम चुनावी कार्यालय में जमा किए जा सकते हैं जैसे कुछ सामाजिक रूप से प्रासंगिक वेबसाइट मतदाता पंजीकरण की जानकारी प्राप्त करने के लिए अच्छा स्थान है मतदान व्यवहार प्रभावित और निर्धारित करने वाले कारक भारतीय समाज अपने प्रकृति एवं रचना में अत्यंत विविध है इसलिए भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक हैं सब की चर्चा करना भी मुश्किल है समझने की दृष्टि से आइए हम इसके मुख्य सामाजिक आर्थिक कारक तथा राजनीतिक कारकों पर चर्चा करते हैं
जाति जाति मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने वाले एक महत्वपूर्ण कारण है समाज में आधुनिकता आने के बावजूद भी जाती वोट देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैक्टर के रूप में काम करता है आज भी राजनीतिक दल अपनी चुनावी राजनीति बनाने के लिए ईस कारक को हमेशा ध्यान में रखते हैं वह किसी खास जाति बहुल क्षेत्र में उसी जाति के उम्मीदवार को उतारते हैं
रजनी कोठारी के अनुसार:-
“भारतीय राजनीति जातिवाद है तथा जाति राजनीतिवाद”


धर्म
भारत में धर्म एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है जो मतदान व्यवहार को प्रभावित करता है जाति जहां किसी छोटे से भाग में अपना प्रभाव दिखातीे हैं वही धर्म एक बड़े भाग में अपना प्रभाव दिखाता है क्योंकि अंतर जातिगत बंधनों के कारण जाति पक्ष थोड़ा कमजोर हो जाता है लेकिन धार्मिक पक्ष अपना रंग दिखाना शुरू करता है
भाषा
भाषा विचार लोगों के मतदान के बाहर को कितना प्रभावित कर सकता है इसका उदाहरण आप इस रूप में देखिए कि जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी को चलाने की बात होती है द्रविडियन भाषा वाले लोग एक हो जाते हैं यहां तक कि पहला राज्य भी भाषा के आधार पर अलग हुआ था चुनाव के दौरान राजनीतिक दल लोगों की भाषा की भावनाएं उतारकर उनके निर्णय को प्रभावित करते हैं
धन
मतदान के व्यवहार की व्याख्या करते हुए धन या पैसा की अनदेखी नहीं की जा सकती है चुनावी खर्चों पर सीमा बांधने के बावजूद करोड़ो रुपए खर्च किए जाते हैं मतदाता अपने मत के बदले पैसा या शराब या कोई और वस्तु चाहता है लेकिन यह भी कई बार यह भी काम नहीं करता कई बार यह देखा जाता है कि मतदाता किसी और से पैसे लेकर किसी और को वोट दे देते हैं और कई बार इसके उपरांत भी रातों-रात जन भाषाएं बदल जाती हैं और मतदान के दिन लोग किसी और को वोट डालकर आ जाते हैं
क्षेत्र
क्षेत्र बात है बताओ क्षेत्रवाद की भी मतदान व्यवहार में महत्वपूर्ण भूमिका है उप राष्ट्रीयता की संकीर्ण भावनाएं अनेक राज्यों में क्षेत्रीय दलों के उदय का कारण बनी है इस प्रकार के क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय से मित्रता तथा भावनाओं के आधार पर मतदाताओं से मत की अपील करते हैं
चुनाव का मतदान व्यवहार में मीडिया की भूमिका सूचना प्रसार चुनाव की घोषणा नामांकन जांच चुनाव अभियान सुरक्षा व्यवस्था चुनाव कब कहां और कैसे की जानकारी मतगणना तथा परिणाम की घोषणा उम्मीदवारों की शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति तथा उनके आपराधिक पृष्ठभूमि से संबंधित सूचना आदेश सबको व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार की जरूरत होती है और मीडिया यह काम बड़ी सहजता से करती है

ध्वनि प्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण आज के युग मे एक बहुत बडी समस्या बनती जा रही हैं कई प्रकार स ध्वनिे प्रदूषण होता है प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण होता है । परन्तु प्राकृतिक ध्वनि प्रदूषण अपेक्षाकृत अल्पकालीन होता है तथा हानि भी कम होती है । शोर के प्राकृतिक स्रोतों के अंतर्गत बादल की गडगडाहट, बिजली की कडक, तूफानी हवाएं आदि से मनुष्य असहज (क्पेबवउवितज) महसूरा करता, परन्तु बूंदों की छमछम, चिडियों की कलरव और नदियों, झरनों की कलकल ध्वनि मनुष्य में आनंद का संचार भी करती है ।

(2) मानवीय स्रोत:

बढते हुए शहरीकरण, परिवहन (रेल, वायु, सड़क) खनन के कारण शोर की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है । वस्तुतः शोर और मानवीय सभ्यता सदैव रहेगें
: ध्वनि प्रदूषण के प्रमुख मानवीय स्रोत निम्न है:

i. उद्योग:

लगभग सभी औद्योगिक क्षेत्र ध्वनि प्रदूषण से प्रभावित है कल-कारखानों में चलने वाली मशीनों से उत्पन्न आवाजध्गडगडाहट इसका प्रमुख कारण है । ताप विद्युत गृहों में लगे ब्यायलर, टरबाइन काफी शोर उत्पन्न करते हैं । अधिकतर उद्योग शहरी क्षेत्रों में स्थापित हैं, अतः वहां ध्वनि प्रदूषण की तीव्रता अधिक है ।

ii. परिवहन के साधन:

ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण परिवहन के विभिन्न साधन भी हैं । परिवहन के सभी साधन कम या अधिक मात्रा में ध्वनि उत्पन्न करते हैं । इनसे होने वाला प्रदूषण बहुत अधिक क्षेत्र में होता है।भारत में कुल वाहनों का आंकड़ा लगभग 22 करोड से पार हो गया है, जिसमें से दो पहिया वाहनों की संख्या लगभग 17 करोड 60 लाख और चार पहिया वाहनों की संख्या 4 करोड 40 लाख हैं । जिसमें कार, टैक्सी, बसें और ट्रक शामिल हैं । वाहनों में प्रतिवर्ष 5 से 10 प्रतिशत
वृद्धि हो रही है
iii. मनोरंजन के साधन:

मनुष्य अपने मनोरंजन के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करता है । वह टी वी. रेडियो, टेपरिकॉर्डर, म्यूजिक सिस्टम (डी.जे.) जैसे साधनों द्वारा अपना मनोरंजन करता है परन्तु इनसे उत्पन्न तीव्र ध्वनि शोर का कारण बन जाती है । विवाह, सगाई इत्यादि कार्यक्रमों, धार्मिक आयोजनो, मेंलों, पार्टियों में लाऊड स्पीकर का प्रयोग और डी.जे. के चलन भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य कारण है ।

iv. निर्माण कार्य:

विभिन्न निर्माण कार्यों में प्रयुक्त विभिन्न मशीनों और औजारों के प्रयोग के फलस्वरूप ध्वनि प्रदूषण बढा है ।

v. आतिशबाजी:

हमारे देश में विभिन्न अवसरों पर की जाने वाली आतिशबाजी भी ध्वनि प्रदूषण का मुख्य स्रोत है । विभिन्न त्योहारों, उत्सवों, मेंलो, सांस्कृतिकध्वैवाहिक समारोहों में आतिशबाजी एक आम बात है ।

मैच या चुनाव जीतने की खुशी भी आतिशबाजी द्वारा व्यक्त की जाती है । परन्तु इन आतिशबाजियों से वायु प्रदूषण तो होता ही है साथ ही ध्वनि तरंगों की तीव्रता भी अधिक होती है, जो ध्वनि प्रदूषण जैसी समस्या को जन्म देती है ।

vi. अन्य कारण:

विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक रैलियों श्रमिक संगठनों की रैलियों का आयोजन इत्यादि अवसरों पर एकत्रित जनसमूहों के वार्तालाप से भी ध्वनि तरंग तीव्रता अपेक्षाकृत अधिक होती है । इसी प्रकार प्रशासनिक कार्यालयों. स्कूली, कालेजों, बस स्टैण्डों, रेलवे स्टेशनों पर भी विशाल जनसंख्या के शोरगुल के फलस्वरूप भी ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होता है । इसी प्रकार अन्य छोटे-छोटे कई ऐसे कारण हैं जो ध्वनि प्रदूषण को जन्म देते हैं जैसे कम चौडी सडकें, सडक पर सामान बेचने वालों के लिए कोई योजना न होना पीक आवर में ज्यादा ट्रैफिक ।

:ध्वनि प्रदूषण के कुप्रभाव
ध्वनि प्रदूषण से मनुष्यों पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभावों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है:

(i) सामान्य प्रभाव:

ध्वनि प्रदूषण द्वारा मानव वर्ग पर पडने वाले प्रभावों के अंतर्गत बोलने में व्यवधा चिडचिडापन, नींद में व्यवधान तथा इनके संबंधित पश्चप्रभावों एवं उनसे उत्पन्न समस्याओं को सम्मिलित किया जाता है ।

(ii) श्रवण संबंधी प्रभाव

विभिन्न प्रयोगो के आधार पर यह ज्ञात हुआ है कि ध्वनि की तीव्रता जब 90 डी.वी. से अधिक हो जाती है तो लोगों की श्रवण क्रियाविधि में विभिन्न मात्रा में श्रवण क्षीणता होती है ।

श्रवण क्षीणता निम्न कारकों पर आधारित होती है:

शोर की अबोध ध्वनि तरंग की आवृत्ति तथा व्यक्ति विशेष की शोर की संवेदनशीलता । लखनऊ में बढते ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभावों का अध्ययन करने के लिए ऐसे लोगों पर शोध किया गया जो लगातार पाँच साल से 10 घंटे से अधिक समय शोर-शराबे के बीच गुजारते हैं । देखने में आया कि 55 प्रतिशत लोगों की सुनने की ताकत कम हो गई है ।

(iii) मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

उच्च स्तरीय ध्वनि प्रदूषण के कारण मनुष्यों में कई प्रकार के आचार व्यवहार संबंधी परिवर्तन हो जाते है । दीर्घ अवधि तक ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में न्यूरोटिक मेंटल डिसार्डर हो जाता है । माँसपेशियों में तनाव तथा खिचाव हो जाता है । स्नायुओं में उत्तेजना हो जाती है ।

(iv) शारीरिक प्रभाव:

उच्च शोर के कारण मनुष्य विभिन्न विकृतियों एवं बीमारियों सग्रसित हो जाता है जैसे- उच्च रक्तचाप, उत्तेजना, हृदय रोग, आँख की पुतलियों में खिचाव तथा तनाव मांसपेशियों में खिचाव, पाचन तंत्र में अव्यवस्था, मानसिक तनाव, अल्सर जैसे पेट एवं अतडियों के रोग आदि ।

विस्फोटों तथा सोनिक बूम के अचानक आने वाली उच्च ध्वनि के कारण गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है लगातार शोर में जीवनयापन करने वाली महिलाओं के नवजात (ध्वनि की गति से अधिक चलने वाले जेट विमानों से उत्पन्न शोर को सोनिक बूम कहते हैं ।) शिशुओ में विकृतियां उत्पन्न हो जाती हैं ।

देशभर में इन दिनों प्लास्टिक का इस्तेमाल न करने और बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल करने की पहल की जा रही है। अगर हम थोड़ी-सी कोशिश करें तो बेकार चीजों का बेहतर तरीके से निस्तारण कर सकते हैं और पर्यावरण में अहम योगदान दे सकते हैं।प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत नियमों में वर्ष 2018 में संशोधन किया गया था जिसमें बहु स्तरीय प्लास्ट कि के अलावा अन्य प्लास्टिक के प्रकारों पर चरणबद्ध तरीके से जोर देना है जो गैर पुनर्चक्रण या गैर-ऊर्जा प्राप्ति योग्य या बिना वैकल्पिक उपयोग के साथ हैं।
संशोधित नियमों में निर्माता/आयातक/ब्रांड के मालिक के पंजीकरण के लिये एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली का भी प्रावधान है।
संशोधित नियमों में यह बताया गया है कि पंजीकरण स्वचालित होना चाहिये और उत्पादकों, रिसाइकलर्स और निर्माताओं के लिये व्यापार में सुविधा को ध्यान में रखना चाहिये।
जबकि दो से अधिक राज्यों में उपस्थिति वाले उत्पादकों के लिये एक राष्ट्रीय रजिस्ट्री निर्धारित की गई है और एक या दो राज्यों के भीतर काम करने वाले छोटे उत्पादकों/ ब्रांड मालिकों के लिये एक राज्य-स्तरीय पंजीकरण निर्धारित किया गया है।
आगे की राह
भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग से उत्पन्न कुल प्लास्टिक कचरा 40% से अधिक है और यह महत्त्वपूर्ण है कि ई-खुदरा विक्रेताओं को दिशा निर्देश जारी किये जाएँ कि वे प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री का उपयोग करना बंद करें और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग सामग्री के विकल्प को अपनाएं सिंगल यूज प्लास्टिक ज्यादा खतरनाक
यों तो प्लास्टिक खतरनाक होता ही है, लेकिन सिंगल यूज प्लास्टिक सबसे ज्यादा खतरनाक है। यह सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल के लिए बनाई गई होती है। इनमें कैरी बैग, कप, पानी या कोल्ड ड्रिंक की बोतलें, स्ट्रॉ, फूड पैकेजिंग आदि आते हैं।

जल प्रदूषण

पानी में हानिकारक पदार्थों जैसे सूक्ष्म जीव, रसायन, औद्योगिक, घरेलू या व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से उत्पन्न दूषित जल आदि के मिलने से जल प्रदूष ित हो जाता है। वास्तव में इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। इस प्रकार के हानिकारक पदार्थों के मिलने से जल के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणधर्म प्रभावित होते हैं। जल की गुणवत्ता पर प्रदूषकों के हानिकारक दुष्प्रभावों के कारण प्रदूषित जल घरेलू, व्यावसायिक, औद्योगिक कृषि अथवा अन्य किसी भी सामान्य उपयोग के योग्य नहीं रह जाता।

पीने के अतिरिक्त घरेलू, सिंचाई, कृषि कार्य, मवेशियों के उपयोग, औद्योगिक तथा व्यावसायिक गतिविधियाँ आदि में बड़ी मात्रा में जल की खपत होती है तथा उपयोग में आने वाला जल उपयोग के उपरान्त दूषित जल में बदल जाता है। इस दूषित जल में अवशेष के रूप में इनके माध्यम से की गई गतिविधियों के दौरान पानी के सम्पर्क में आये पदार्थों या रसायनों के अंश रह जाते हैं। इनकी उपस्थिति पानी को उपयोग के अनुपयुक्त बना देती है। यह दूषित जल जब किसी स्वच्छ जलस्रोत में मिलता है तो उसे भी दूषित कर देता है। दूषित जल में कार्बनिक एवं अकार्बनिक यौगिकों एवं रसायनों के साथ विषाणु, जीवाणु और अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीव रहते हैं जो अपनी प्रकृति के अनुसार जलस्रोतों को प्रदूषित करते हैं।

जलस्रोतों का प्रदूषण दो प्रकार से होता है :-

  1. बिन्दु स्रोत के माध्यम से प्रदूषण
  2. विस्तृत स्रोत के माध्यम से प्रदूषण
  3. बिन्दु स्रोत के माध्यम से प्रदूषण :-

जब किसी निश्चित क्रिया प्रणाली से दूषित जल निकलकर सीधे जलस्रोत में मिलता है तो इसे बिन्दु स्रोत जल प्रदूषण कहते हैं। इसमें जलस्रोत में मिलने वाले दूषित जल की प्रकृति एवं मात्रा ज्ञात होती है। अतः इस दूषित जल का उपचार कर प्रदूषण स्तर कम किया जा सकता है। अर्थात बिंदु स्रोत जल प्रदूषण को कम किया जा सकता है। उदाहरण किसी औद्योगिक इकाई का दूषित जल पाइप के माध्यम से सीधे जलस्रोत में छोड़ा जाना, किसी नाली या नाले के माध्यम से घरेलू दूषित जल का तालाब या नदी में मिलना।

  1. विस्तृत स्रोत जल प्रदूषण :-

अनेक मानवीय गतिविधियों के दौरान उत्पन्न हुआ दूषित जल जब अलग-अलग माध्यमों से किसी स्रोत में मिलता है तो इसे विस्तृत स्रोत जल प्रदूषण कहते हैं। अलग-अलग माध्यमों से आने के कारण इन्हें एकत्र करना एवं एक साथ उपचारित करना सम्भव नहीं है। जैसे नदियों में औद्योगिक एवं घरेलू दूषित जल या अलग-अलग माध्यम से आकर मिलना।

विभिन्न जलस्रोतों के प्रदूषक बिन्दु भी अलग-अलग होते हैं।

  1. नदियाँ :- जहाँ औद्योगिक दूषित जल विभिन्न नालों के माध्यम से नदियों में मिलता है, वहीं घरेलू जल भी नालों आदि के माध्यम से इसमें विसर्जित होता है। साथ ही खेतों आदि में डाला गया उर्वरक, कीटनाशक तथा जल के बहाव के साथ मिट्टी कचरा आदि भी नदियों में मिलते हैं।
  2. समुद्री जल का प्रदूषण :- सभी नदियाँ अंततः समुद्रों में मिलती हैं। अतः वे इनके माध्यम से तो निश्चित रूप से प्रदूषित होती हैं। नदियों के माध्यम से औद्योगिक दूषित जल और मल-जल, कीटनाशक, उर्वरक, भारी धातु, प्लास्टिक आदि समुद्र में मिलते हैं। इनके अतिरिक्त सामुद्रिक गतिविधियों जैसे समुद्री परिवहन, समुद्र से पेट्रोलियम पदार्थों का दोहन आदि के कारण भी सामुद्रिक प्रदूषण होता है।

जलस्रोतों की भौतिक स्थिति को देखकर ही उनके प्रदूषित होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। जल का रंग, इसकी गंध, स्वाद आदि के साथ जलीय खरपतवार की संख्या में इजाफा, जलीय जीवों जैसे मछलियों एवं अन्य जन्तुओं की संख्या में कमी या उनका मरना, सतह पर तैलीय पदार्थों का तैरना आदि जल प्रदूषित होने के संकेत हैं। कभी-कभी इन लक्षणों के न होने पर भी पानी दूषित हो सकता है, जैसे जलस्रोतों में अम्लीय या क्षारीय निस्राव या मिलना या धात्विक प्रदूषकों का जलस्रोतों से मिलना। इस तरह के प्रदूषकों का पता लगाने के लिये जल का रासायनिक विश्लेषण करना अनिवार्य होता है।

वायु प्रदूषण

प्रदूषण इन्सानी सेहत के लिये एक बहुत बड़ी समस्या बनता जा रहा है। उसके बहुत से कारण हैं। हवा में प्रदूषण का एक कारण कुदरती जरिया है उड़ती हुई धूल। कारखानों के परिचालन या जंगल की आग से तमाम किस्म के हानिकारक कण हवा में दाखिल हो जाते हैं, जिनसे पर्यावरण में प्रदूषण फैलता रहता है। जब जंगल में आग लगती है तो उससे जंगल जलकर राख हो जाते हैं और यही राख जब हवा में दाखिल होती है तो प्रदूषण फैलाती है। दूसरी सबसे बड़ी वजह आबादी का बढ़ना और लोगों का खाने-पीने और आने-जाने के लिये साधन उपलब्ध करवाना है जिसकी वजह से स्कूटर, कारों और उनके उद्योगों का बढ़ना, थर्मल पावर प्लाण्ट का बढ़ना, कारों की रफ्तार का बढ़ना, प्राकृतिक पर्यावरण में बदलाव का होना है।

आबादी बढ़ने से प्रदूषण भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। प्रदूषण चाहे पानी की वजह से हो या हवा की वजह से, इसने इन्सान के स्वास्थ्य को तबाह कर दिया है। इस प्रदूषण की वजह से किसी को कैन्सर है तो किसी को शुगर या हृदय रोग। जब आबादी बढ़ती है तो यह आवश्यक है कि मानवीय जरूरतें पूरी की जायें।

प्रदूषण की खासतौर पर तीन किस्में होती हैं। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण। लेकिन हम यहाँ पर वायु प्रदूषण और मानव जीवन के बारे में बताना चाहेंगे।

वायु प्रदूषण एक ऐसा प्रदूषण है जिसके कारण रोज-ब-रोज मानव स्वास्थ्य खराब होता चला जा रहा है और पर्यावरण के ऊपर भी इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। यह प्रदूषण ओजोन की परत को पतला करने में मुख्य भूमिका निभा रहा है, जिसकी वजह से जैसे ही आप घर के बाहर कदम रखेंगे आप महसूस करेंगे कि हवा किस कदर प्रदूषित हो चुकी है। धुएँ के बादलों को बसों, स्कूटरों, कारों, कारखानों की चिमनियों से निकलता हुआ देख सकते हैं। थर्मल पावर प्लान्ट्स से निकलने वाली फ्लाई ऐश (हवा में बिखरे राख के कण) किस कदर हवा को प्रदूषित कर रहा है, रों की गति रोड पर किस कदर प्रदूषण को बढ़ा रही है। सिगरेट का धुआँ भी हवा को प्रदूषित करने में पीछे नहीं है।

वायु प्रदूषण से कैसे बचें

  1. सरकार को ऐसी नीतियाँ बनानी चाहिए कि कर्मचारी घर पर ही बैठकर काम करें। एक सप्ताह में सिर्फ एक दिन ही कार्यालय जायें। और अब सूचना तकनीक के आ जाने से यह सम्भव भी है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका के कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले 35% लोग सप्ताह में केवल एक दिन कार्यालय जाते हैं। बाकी काम घर पर बैठकर करते हैं। जिससे उनका आने-जाने का खर्च भी नहीं होता और वायु में प्रदूषण भी नहीं बढ़ता। आने जाने में जो वक्त लगता है उसका इस्तेमाल वे लोग दूसरे कामों में करते हैं। जैसे- बागवानी।
  2. अधिक से अधिक साइकिल का इस्तेमाल करें।
  3. सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करें।
  4. बच्चों को कार से स्कूल न छोड़ें बल्कि उनको स्कूल ट्रांसपोर्ट में जाने के लिये प्रोत्साहित करें।
  5. अपने घर के लोगों को कारपूल बनाने के लिये कहें जिससे कि वो एक ही कार में बैठकर कार्यालय जायें। इससे ईंधन भी बचेगा और प्रदूषण भी कम होगा।
  6. अपने घरों के आस-पास पेड़-पौधों की देखभाल ठीक से करें।
  7. जब जरूरत न हो बिजली का इस्तेमाल न करें।
  8. जिस कमरे में कूलर पंखा या एयर कन्डीशन जरूरी हों, वहीं चलाएँ, बाकी जगह बन्द रखें।
  9. आपके बगीचे में सूखी पत्तियाँ हों तो उन्हें जलाएँ नहीं, बल्कि उसकी खाद बनायें।
  10. अपनी कार का प्रदूषण हर तीन महीने के अन्तराल पर चेक करवाएँ।
  11. केवल सीसामुक्त पेट्रोल का इस्तेमाल करें। बाहर के मुकाबले घरों में प्रदूषण का प्रभाव कम होता है इसलिये जब प्रदूषण अधिक हो तो घरों के अन्दर चले जाएँ।

मृदा प्रदूषण

धात्विक प्रदूषण को कम करने हेतु यद्यपि कई तकनीकें विकसित की जा चुकी हैं, तथापि अत्यधिक महँगी तथा कभी-कभी प्रायोगिक रूप से उपयोगी न होने के कारण इनको प्रत्येक स्थान पर प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में पौधों के प्रयोग द्वारा इन धातुओं का निस्तारण एक सरल, सस्ती और आसान प्रक्रिया सिद्ध हो सकती है। विशेषकर पर्यावरणीय दृष्टिकोण से यह एक अनुकूल विधि है। इसमें अतिरिक्त हानिकारण उत्पादों की संभावना काफी कम होती है।

पौधों में धातु संचय करने तथा प्रतिरोध करने की क्षमता होती है। पौधों द्वारा प्रदूषकों का अवशोषण या निस्तारण पादप उपचार (फाइटोरेमिडियेशन) कहलाता है। विभिन्न भारी धातुओं के उपचार के लिये यह एक विश्वसनीय तकनीक है। कुछ पौधे विभिन्न प्रदूषकों तथा धातुओं को अवशोषित करने की क्षमता रखते हैं। अधिक मात्रा में प्रदूषकों को अवशोषित करने वाले पौधों को मेटेलोफाइट या हाइपर एकुमुलेटर कहते हैं। ये पौधे भारी धातुओं को जड़ों द्वारा अवशोषित करके अपने अनुपयोगी ऊतकों में संचयित करते हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि पौधों की जड़ें मिट्टी में कार्बनिक प्रदूषकों की जैविक अपघटन प्रक्रिया को तेज कर देती हैं। मिट्टी तथा पानी में भारी धातुओं की मात्रा के मॉनीटरन और प्रदूषण निवारण के लिये ऐसे अनेक प्रकार के पौधों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।

पौधों विभिन्न धातुओं को घुलनशील ऑक्सीकरण (Soluble oxidation) अवस्था से अघुलनशील ऑक्सीकरण (Insoluble oxidation state) में परिवर्तित करके धातु निक्षालन को रोकते हैं। साथ ही उन्हें उद्ग्रहण अवक्षेपण और अपचयन के माध्यम से निश्चल किया जा सकता है।

पौधे अपनी जड़ों की सतह में उपस्थित सूक्ष्म जीवों की विघटनकारी प्रक्रिया के द्वारा कार्बनिक यौगिकों को तोड़कर सरलीकृत कर देते हैं और इसे आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। इन उपचारित पौधों को प्रदूषित स्थल से दूर ले जाकर विभिन्न विधियों द्वारा संचयित तत्वों को इनसे अलग कर लिया जाता है। जैव प्रौद्योगिकी की सहायता से इस समय ऐसी विधियाँ विकसित कर ली गई है जिनके द्वारा चुने हुए तथा विशेष रूप से निर्मित सूक्ष्म जीवों के प्रयोग से पौधों द्वारा धातुओं का अवशोषण बढ़ाकर मृदा पुन: कृषि योग्य बनाई जा सकती है। दूसरी ओर पारंपरिक विधियों की अपेक्षा कम लागत से अधिक धातु प्राप्त करने के प्रयास जारी हैं। सर्वप्रथम अमेरिका के सूक्ष्मजीवी वैज्ञानिकों ने सन 1947 में थायोबैसिलस फैरोआॅक्सीडेन्स नामक जीवाणु की सहायता से तांबे को कच्ची धातु से प्राप्त किया था। ये जीवाणु पूरी तरह से सल्फाइड पर जीवन-यापन करते हैं और अम्लीय वातावरण में तेजी से बढ़ते हैं।

मृदा प्रदूषण

भारी धातुओं कें अंतर्गत वे तत्व आते हैं जिनका घनत्व 5 से अधिक होता है। मुख्य भारी धातुयें हैं- कैडमियम, क्रोमियम, कोबाल्ट, कॉपर, आयरन, मरकरी, मैग्नीज, मोलिब्डेनम, निकिल, लेड, टिन तथा जिंक। कुछ भारी धातुयें जैसे- कॉपर, आयरन, मैग्नीज, जिंक, मोलिब्डेनम तथा कोबाल्ट की सूक्ष्म मात्रा जानवरों के लिये आवश्यक होती है, किंतु कैडमियम, मरकरी तथा लैड न तो पौधों के लिये आवश्यक है और न ही जानवरों के लिये अर्थात पर्यावरण में इनकी उपस्थिति वनस्पतियों, जीवों एवं स्वयं मनुष्य के लिये हानिकारक होती हैं। ये विषैली भारी धातुयें अनुमत सांद्रण सीमा से अधिक होने पर मृदा के धात्विक प्रदूषण का कारण बनती हैं। इन धातुओं को औद्योगिक महत्त्व होने के नाते रोज नये-नये कारखानों की स्थापना हो रही है। फलत: प्रतिदिन अपशिष्ट के रूप में इन धातुओं का ढेर सा लग जाता है और पर्यावरण में इन धातुओं का प्रचुर अंश विष रूप में मिलता रहता है। इन अपशिष्टों के हवा, नदी-नाले तथा मिट्टी आदि में पहुँचने से जल तथा मिट्टी के धात्विक प्रदूषण की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जल, वायु, मिट्टी ही नहीं अपितु इससे अब खाद्य सामग्री भी प्रदूषित होने लगी है।

शहरी गंदे जल (सीवेज-स्लज) से खींची गयी मिट्टियों में उपजने वाली फसलों में कैडमियम की उच्च मात्रायें पायी जा सकती हैं। अतएव पौधे तथा फसलें कम से कम कैडमियम ग्रहण करें, इस दिशा में शोध की आवश्यकता बनी हुई है।

यहाँ प्रस्तुत भारी धातुओं के अतिरिक्त अन्य और भी भारी धातुयें हैं जो पर्यावरण प्रदूषण के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हैं। सामान्यत: भारी धातुयें वे हैं जिनका घनत्व 5 से अधिक हो किंतु आजकल इस मूल संकल्पना में परिवर्तन हो चुका है अब भारी धातुयें उन्हें माना जाता है जिनमें इलेक्ट्रॉन स्थानान्तरण का गुण-धर्म पाया जाता है।

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